जूता और ढोल

जूता सोचता है –
मैं भी उसी चमड़े का
ढोल भी उसी चमड़े का
फिर मैं ही क्यों रोक लिया जाता हूँ
मंदिर में घुसने से?
उतार कर रख दिया जाता हूँ
चौखट पर?
धिक् व्यवस्था !
कहता है जूता
जूतों की भीड़ में

मंदिर के अन्दर
मार खाता ढोल भी सोचता है
ऐसा ही कुछ ।