एक मशीनी हाथ
मुझे दरवाज़े पर रोककर
लेता है तलाशी
बैग की ज़िप को
खोलता बंद करता हुआ
कतार में लगे जूते
अपने सामूहिक अपरिचय में
एक दिशा में ताकते हैं
हम बदलते हैं लगातार
अपने चलने का प्रयोजन
गति और अंदाज़
फर्श पर हमारी नैसर्गिक चाल
फिसलती है
शीशे के पार चमकती हुई
एक कैजुअल कमीज़ के ऊपर
मेरा चेहरा ठहरता हुआ गुज़रता है
लाल रंग की बोर्ड पर जहाँ
लिखा है– ‘सेल’
कांच के आरपार
इत्र की खुशबू
नियोन जैसे आँखों वाले
सुन्दर स्त्री-पुरुष;
मैं यूटोपिया में विचरता हूँ–
यहाँ सब सच है
यहाँ सब भ्रम है
मगर सब हासिल है
सीढ़ियाँ मेरे पाँव के स्पर्श से चल देती हैं
आकाशगंगा की ओर
फ्लोर दर फ्लोर
दो चोर आँखें
तारामंडल में मंडराती हैं
मेरी चीज़ें लगातार
पुरानी पड़ जाती हैं
फ़ोन के स्क्रैच पर उँगलियों का मैल जमने लगता है
खटकने लगती है नाक को
जैकेट में रची बसी
अपनी देह की गंध
बोलिंग एले में एक भारी गोला
अकेला लुढ़कता हुआ
बोतलों की कतार से टकराकर
विजयी होता है
टेलीस्क्रीन देती है जापानी में जीत की बधाई
आँखों में थ्रीडी ऐनक लगाए
एक बच्चा आता है मेरे पास
और पूछता है हाथ पकड़कर
बाहर निकलने का रास्ता ।