पिछली दफ़ा गेंदा लिखना चाहा
और गैंडा लिख दिया
काफ़ी देर तक एक पूरी की पूरी कविता
मेरी नाक में चुभती रही
हिप्पी की जगह हिप्पो लिखा
कीबोर्ड की गलती थी कि ‘आई’ ‘ओ’ के इतने पास था
वैसे मैं हिप्पु भी लिख सकता था
मगर हिप्पो लिखा
फिर उस दिन मैंने हिप्पो के नथुनों से धुआँ निकलते देखा
पुराने रॉक गीतों पर मटकाते देखा कमर
उस दिन मालूम पड़ा
कि हिप्पो कितना शांतिप्रिय जानवर है
घोड़ा को घड़ा लिख दिया
इसे सुधारना आसान था
मगर कई दिनों के बाद
जब सचमुच का घोड़ा देखा
कैसा सूख आया कंठ –
यह कैसी ध्वनि थी दूर तक टापों की
जो मेरी गलतियों से निकल
घोड़े की प्यास बुझा रहा था
फिर एक बार
हंस को हँस पढ़ा
और हँस पड़ा
अक्सर हाथी को हाथ लिख देता
अच्छा हुआ कि इस वजह से
हाथों पर छड़ी पड़ी थी
हाथी पर पड़ती तो शायद बमक जाता
बस इसी तरह
हाथी ने हाथों पर चलते हुए
प्रवेश किया था मेरी भाषा में
ताज्जुब यह
कि मैं बटोर को बटेर
बालू को भालू
और बाग़ को बाघ की तरह ही
देखता सोचता याद करता था
मेरी कल्पना में इनके नाम गलत थे
रूप नहीं
अफ़सोस !
अब नाम वर्तनी मुसलसल हैं
गूगल की दया से
कीबोर्ड पर उंगलियाँ भी चलती हैं ताबड़तोड़
मगर वो कौन सी गलती है जिसे उलट नहीं पा रहा
कि स्मृति और ज़मीन से गायब हैं मेरे
ये जानवर ।