बाहर की घटनाएँ
घट रहीं भीतर
मेरा सिर एक पेड़
बैठी चिड़िया गा रही
केश – तार पर सूखते कपड़े
पार गुजरती हवा गीली हो रही
पलकें – पत्ते, जिन्हें टूटकर गिरता देख रहा हूँ मैं
मेरे हाथ से बह निकली है एक नदी
और पैरों ने पहन रक्खी हैं पगडंडियाँ
खिड़की के न टूटने की आवाज़ मेरे कान
मेरी नाक एक मक्खी
जो दूर चरती एक गाय के इर्द-गिर्द मंडरा रही
मेरी पूरी उपस्थिति एक खाली झूला
परछाईं बिछी घास पर सरसरा रही
और इन सबको देखती मेरी आँखें –
एक राहगीर
जो बाहर से गुज़रता हुआ
झाँक रहा मेरे भीतर ।