सिंगापुर के चर्चित कवि एल्विन पैंग से मैं दिसंबर 2014 में चेन्नई प्रवास के दौरान मिला था। यहीं मैंने इनके साथ एक मंच पर छात्रों के बीच अपनी कविताएँ पढ़ीं, इनकी शांत गंभीर आवाज़ में इन कविताओं का अनुभव किया, और अगले कुछ दिनों तक इन्हें पढ़ता रहा। पैंग की कविताओं से गुज़रना बरसात के मौसम में जैज़ संगीत सुनने जैसा अनुभव है। भूमध्यवर्ती देश के इस कवि की कविताएँ शांत और धीमी सी हैं। ये धीरे-धीरे हमारे ज़ेहन में घुलती हैं, और मिठास जैसा कुछ छोड़ जाती हैं। ये अल्प शब्दों के कवि हैं। बावजूद इसके, इनकी कविताओं में अपने समय और समाज के प्रति स्वीकृति और तिरस्कार के बीच का द्वंद्व दिखलाई पड़ता है। Continue reading
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बारिश और जैज़ संगीत : एल्विन पैंग की कविताएँ
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कागज़ी जिजीविषा और भारतीय किसान
स्कूल के दिनों में ‘राष्ट्रगान‘ नाम की एक कविता लिखी थी। हालाँकि jargon में लिखी गई यह कविता काफी एमेच्यूर थी और शायद इसी वजह से कुछ मित्रों के बीच विवादित भी रही, लेकिन इस कविता की कुछ पंक्तियाँ केवल सन्दर्भ स्थापित करने के उद्देश्य से साझा करने की इजाज़त चाहूँगा –
जहां मिट्टी के कीड़े, मिट्टी खाकर, मिट्टी उगलते हैं
फिर उसी मिट्टी पर छाती के बल चलते हैं
जहां कागज़ पर क्षणों में फसल उगाए जाते हैं
और उसी कागज़ में आगे कहीं वे
गरीबों में जिजीविषा भी बंटवाते हैं Continue reading
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जिजीविषा और मुमुक्षा : शी लिजी की कविताएँ
राजकमल चौधरी ने ‘मुक्ति-प्रसंग’ के बारे में लिखा है – ‘मैंने अनुभव किया है, स्वयं को और अपने अहं को मुक्त किया जा सकता है।… इस अनुभव के साथ ही, दो समानधर्मा शब्द – जिजीविषा और मुमुक्षा – इस कविता के मूलगत कारण है।’ चीनी कवि शी लिजी की कविताओं को पढ़कर भी कुछ ऐसा ही महसूस हुआ। लेकिन यह कवि अस्पताल नहीं कारखाने में मर रहा है, जिसकी कविताएँ असेंबली लाइन के शोर और शयनागारों के सन्नाटे को चुपचाप समेटतीं हैं। Continue reading
एक लेखक की मौत

दृश्य में दर्शन की तलाश : कोबायाशी इस्सा के हाइकू

कोबायाशी इस्सा (1763 – 1828), जिन्हें इस्सा के नाम से भी जाना जाता है, जापानी हाइकू के चार स्तम्भों में गिने जाते हैं, जिनमें इनके अलावा मात्सुओ बाशो, योसा बुसोन और मासाओका शिकि भी शामिल हैं। जापान में इस्सा हाइकू के जन्मदाता माने जाने वाले बाशो जितने ही लोकप्रिय हैं। बाशो से एक शताब्दी बाद जन्मे इस्सा को हाइकू की रूढ़िवादी प्रथा का विधर्मी माना गया है। जहाँ बाशो ने अपने रहस्यवाद और बुसोन ने अपने विलक्षण सौंदर्यवाद से हाइकू की परंपरा को समृद्ध किया है, वहीं इस्सा की असाधारण करुणा इन्हें हाइकू के नवजागरण और आधुनिकीकरण का महत्वपूर्ण कवि बनाती है। Continue reading
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