1967 में मार्टिन लुथर किंग जूनियर ने वियतनाम के कवि और बौद्ध भिक्षु थिक नात हान को नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित करते हुए कहा था – “मैं किसी दूसरे ऐसे व्यक्ति को नहीं जानता जो इस पुरस्कार के इतना योग्य है। वियतनाम के इस शान्तिदूत की बातों पर अगर ग़ौर किया गया तो विश्व शान्ति कायम हो सकती है।” इसी साल अमेरिका के एक चर्च में हान से एक व्यक्ति ने सवाल किया – “आप वियतनाम के अपने हमवतनों से इतना प्रेम करते हैं तो अमेरिका में क्या कर रहे हैं? अपने देश जाइए।” हान का जवाब था – “हमारे गृहयुद्ध की जड़ें अमेरिका में हैं। अगर आपके सिपाही मेरे देश में निर्दोषों की हत्या कर सकते हैं तो क्या मैं आपके देश में शांति की बात नहीं कर सकता?” Continue reading
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तटस्थता में हस्तक्षेप का स्वर : थिक नात हान की कविताएँ
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कवि का मोक्ष कविता है
‘मोक्षधरा’ सुधीर रंजन सिंह का दूसरा काव्य संग्रह है। इनके पहले और दूसरे संग्रह के बीच दो दशकों की लम्बी समयावधि, जहाँ एक तरफ कवि की परिपक्वता से हमें आश्वासित करती है, वहीं दूसरी तरफ कवि की अपनी ज़मीन को धैर्यपूर्वक तलाशने के प्रति प्रतिबद्धता की ओर भी इशारा करती है। इसी बीच उन्होंने भर्तृहरि के काव्य श्लोकों की अनुरचना का महत्वपूर्ण काम किया है। ‘मोक्षधरा’ की कविताओं में भी वह झलकता है। वही सघन जीवन-बोध जिसमें राग और विराग समान अनुभव के दो छोर हैं। कवि कभी चिड़िया में सूर्योदय को दुबका हुआ देखता है, तो कभी लोगों का अपनी-अपनी बसों में घुसना अपने घरों में घुसने की तरह देखता है। Continue reading
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बारिश और जैज़ संगीत : एल्विन पैंग की कविताएँ
सिंगापुर के चर्चित कवि एल्विन पैंग से मैं दिसंबर 2014 में चेन्नई प्रवास के दौरान मिला था। यहीं मैंने इनके साथ एक मंच पर छात्रों के बीच अपनी कविताएँ पढ़ीं, इनकी शांत गंभीर आवाज़ में इन कविताओं का अनुभव किया, और अगले कुछ दिनों तक इन्हें पढ़ता रहा। पैंग की कविताओं से गुज़रना बरसात के मौसम में जैज़ संगीत सुनने जैसा अनुभव है। भूमध्यवर्ती देश के इस कवि की कविताएँ शांत और धीमी सी हैं। ये धीरे-धीरे हमारे ज़ेहन में घुलती हैं, और मिठास जैसा कुछ छोड़ जाती हैं। ये अल्प शब्दों के कवि हैं। बावजूद इसके, इनकी कविताओं में अपने समय और समाज के प्रति स्वीकृति और तिरस्कार के बीच का द्वंद्व दिखलाई पड़ता है। Continue reading
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जिजीविषा और मुमुक्षा : शी लिजी की कविताएँ
राजकमल चौधरी ने ‘मुक्ति-प्रसंग’ के बारे में लिखा है – ‘मैंने अनुभव किया है, स्वयं को और अपने अहं को मुक्त किया जा सकता है।… इस अनुभव के साथ ही, दो समानधर्मा शब्द – जिजीविषा और मुमुक्षा – इस कविता के मूलगत कारण है।’ चीनी कवि शी लिजी की कविताओं को पढ़कर भी कुछ ऐसा ही महसूस हुआ। लेकिन यह कवि अस्पताल नहीं कारखाने में मर रहा है, जिसकी कविताएँ असेंबली लाइन के शोर और शयनागारों के सन्नाटे को चुपचाप समेटतीं हैं। Continue reading
दृश्य में दर्शन की तलाश : कोबायाशी इस्सा के हाइकू

कोबायाशी इस्सा (1763 – 1828), जिन्हें इस्सा के नाम से भी जाना जाता है, जापानी हाइकू के चार स्तम्भों में गिने जाते हैं, जिनमें इनके अलावा मात्सुओ बाशो, योसा बुसोन और मासाओका शिकि भी शामिल हैं। जापान में इस्सा हाइकू के जन्मदाता माने जाने वाले बाशो जितने ही लोकप्रिय हैं। बाशो से एक शताब्दी बाद जन्मे इस्सा को हाइकू की रूढ़िवादी प्रथा का विधर्मी माना गया है। जहाँ बाशो ने अपने रहस्यवाद और बुसोन ने अपने विलक्षण सौंदर्यवाद से हाइकू की परंपरा को समृद्ध किया है, वहीं इस्सा की असाधारण करुणा इन्हें हाइकू के नवजागरण और आधुनिकीकरण का महत्वपूर्ण कवि बनाती है। Continue reading
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