राजकमल चौधरी ने ‘मुक्ति-प्रसंग’ के बारे में लिखा है – ‘मैंने अनुभव किया है, स्वयं को और अपने अहं को मुक्त किया जा सकता है।… इस अनुभव के साथ ही, दो समानधर्मा शब्द – जिजीविषा और मुमुक्षा – इस कविता के मूलगत कारण है।’ चीनी कवि शी लिजी की कविताओं को पढ़कर भी कुछ ऐसा ही महसूस हुआ। लेकिन यह कवि अस्पताल नहीं कारखाने में मर रहा है, जिसकी कविताएँ असेंबली लाइन के शोर और शयनागारों के सन्नाटे को चुपचाप समेटतीं हैं। Continue reading